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Showing posts from February, 2023

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  एक फकीर हुआ, अगस्तीन। एक फकीर हुआ, अगस्तीन। कोई तीस वर्षों से परमात्मा की खोज में था। भूखा और प्यासा, रोता और चिल्लाता और प्रार्थना करता। एक क्षण का विश्राम न लेता। जीवन का कोई भरोसा नहीं है। परमात्मा को पा लेना है। तो सब भांति के उपाय उसने किए। बूढ़ा हो गया था, थक गया था, परमात्मा की कोई प्राप्ति न हुई थी। कोई दूर, परमात्मा निकट नहीं आया। बुढ़ापा निकट आ रहा था, मौत करीब आ रही थी उतने ही प्राण और चिंतित होते जाते थे। एक दिन सुबह-सुबह ही…रात भर रो कर भगवान से प्रार्थना करता रहा कि कब मुझे दर्शन दोगे? सुबह उठा और नदी के, समुद्र के किनारे घूमने चला गया। सूरज उगने को था। किनारा एकांत था समुद्र का, कोई भी वहां न था। थोड़ी दूर चलने पर एक छोटा-सा बच्चा उसे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा एक चट्टान के पास। बहुत चिंतित, बहुत परेशान वह बच्चा था। अगस्तीन ने पूछाः तू किसलिए इतना परेशान है? और इतने सुबह-सुबह इस अकेले समुद्र के किनारे क्यों चला आया? उस बच्चे ने, अपने कंधे पर एक झोली टांग रखी थी। उस झोली में से एक बर्तन निकाला, छोटा सा बर्तन, और उसने कहा, मैं परेशान हूं। मैं इस बर्तन में समुद्र को भर लेना चाहता...

Hindi Story

  अड़सठ की उम्र में हिमालय जीता उत्तरकाशी की चन्द्रप्रभा अटवाल ने कायम की मिसाल, 6133 मी ऊँची चोटी श्रीकंठ पर लहराया तिरंगा। उत्तरकाशी की 68 वर्षीय चन्द्रप्रभा अटवाल पहाड़ों की गोद में खेलकर बड़ी हुई और होश सम्भालने पर इन्हीं से दिल लगा बैठीं। उम्र के इस पड़ाव में भी चन्द्रप्रभा के हौसले इतने बुलन्द हैं कि उन्होंने हिमालय की 6133 मी ऊँची चोटी श्रीकंठ पर तिरंगा फहराकर मिसाल कायम की है। आठ महिला पर्वतारोहियों के दल का नेतृत्व करने वाली चन्द्रप्रभा को पहाड़ों से इस कदर मोह हो गया कि उन्होंने शादी भी नहीं की। पर्वतारोहण का 40 साल का अनुभव रखने वाली चन्द्रप्रभा ने कई अन्य देशों में पर्वतारोहण किया है। इस पर्वतारोही ने नेपाल, चीन, जापान में पहाड़ों की ऊँचाई नापी है। चन्द्रप्रभा को माउण्ट एवरेस्ट पर तिरंगा नहीं फहरा पाने का मलाल आज भी है। उन्होंने बताया कि वे तीन बार एवरेस्ट मिशन के लिए चुनी गईं, लेकिन वे इन्हें पूरा नहीं कर पाईं। ̥̥

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  गोल्फ कैडी बंगलुरु के गोल्फ क्लब में कैडी (अर्थात् खिलाड़ियों के पीछे बैग उठाकर चलने वाले लड़के) का कार्य करने वाले, चिन्ना स्वामी मनियप्पा ने 11 अक्टूबर, 2009 को 12.5 लाख डॉलर की हीरो होण्डा इण्डियन ओपन चैम्पियनशिप जीतकर सभी को अचम्भे में डाल दिया। जब डीएलएफ गुडगाँव गोल्फ क्लब के मैदान पर चिन्ना स्वामी ने दक्षिण कोरिया के प्रतिष्ठित खिलाड़ी ली सुंग को हराया, तो लोग विश्वास न कर सके। कर्नाटक के चिन्ना स्वामी मनिअप्पा ने बिना किसी कोच के स्वयं की मेहनत एवं लगन के बल पर यह प्रतियोगिता जीतकर यह साबित कर दिया कि लगन निष्ठा एवं आत्मविश्वास से कोई भी लक्ष्य हासिल करना सम्भव है। चिन्ना स्वामी आज तक कर्नाटक गोल्फ क्लब के सदस्य नहीं हैं। चिन्ना स्वामी के माता-पिता कर्नाटक के उसी गोल्फ मैदान पर दैनिक मजदूर थे, जहाँ आज उनका बेटा गोल्फ की प्रैक्टिस करता है। चिन्ना स्वामी ने गोल्फ की बारीकियाँ कैडी का कार्य करते-करते सीखीं एवं प्रोफेशनल गोल्फर बने। हमें गर्व है ऐसे भारतीय पर। चिन्ना स्वामी आज हर उस युवक के लिए प्रेरणास्रोत हैं, जो आर्थिक मजबरी को अपनी सफलता के मार्ग की रुकावट समझते हैं।