Story
  एक फकीर हुआ, अगस्तीन। एक फकीर हुआ, अगस्तीन। कोई तीस वर्षों से परमात्मा की खोज में था। भूखा और प्यासा, रोता और चिल्लाता और प्रार्थना करता। एक क्षण का विश्राम न लेता। जीवन का कोई भरोसा नहीं है। परमात्मा को पा लेना है। तो सब भांति के उपाय उसने किए। बूढ़ा हो गया था, थक गया था, परमात्मा की कोई प्राप्ति न हुई थी। कोई दूर, परमात्मा निकट नहीं आया। बुढ़ापा निकट आ रहा था, मौत करीब आ रही थी उतने ही प्राण और चिंतित होते जाते थे। एक दिन सुबह-सुबह ही…रात भर रो कर भगवान से प्रार्थना करता रहा कि कब मुझे दर्शन दोगे? सुबह उठा और नदी के, समुद्र के किनारे घूमने चला गया। सूरज उगने को था। किनारा एकांत था समुद्र का, कोई भी वहां न था। थोड़ी दूर चलने पर एक छोटा-सा बच्चा उसे खड़ा हुआ दिखाई पड़ा एक चट्टान के पास। बहुत चिंतित, बहुत परेशान वह बच्चा था। अगस्तीन ने पूछाः तू किसलिए इतना परेशान है? और इतने सुबह-सुबह इस अकेले समुद्र के किनारे क्यों चला आया? उस बच्चे ने, अपने कंधे पर एक झोली टांग रखी थी। उस झोली में से एक बर्तन निकाला, छोटा सा बर्तन, और उसने कहा, मैं परेशान हूं। मैं इस बर्तन में समुद्र को भर लेना चाहता...